आज विकासशील होना इंसान का सपना बन गया है । वह केवल खुद को ही नहीं बल्कि अपनी आस-पास की जगहों को भी परिवर्तित करने में लगा है । इसी परिवर्तन की लत के चलते, हम आज शहरीकरण जैसे शब्दों को अपनी आम ज़िंदगी में सुनते रहते हैं । और केवल सुनना ही क्यों, शहरीकरण अब एक ऐसी वास्तविक सच्चाई है जो हमें वन-कटाई और घटते हरित क्षेत्र में यथार्थ होती दिख रही है ।
आम तौर पर शहरीकरण के मुख्य तीन कारण सामने आते हैं । जिनमें जनसंख्या का दबाव, बढ़ते औद्योगीकरण, और रोज़गार पाने के लिए शहरी प्रवास करने जैसे कार्य शामिल हैं । इन्हीं कुछ वजहों के कारण देहरादून शहर में भी शहरीकरण अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया है और इसके नतीजें पर्यावरण के लिए कुछ ख़ास बेहतर साबित नहीं हो रहें हैं ।
2011 में हुई जनगणना के हिसाब से देहरादून शहर की आबादी लगभग 5,78,420 है । वर्तमान समय में नगर निगम प्राधिकारी वर्ग के अनुसार यह आबादी 8,00,000 के पार हो चुकी है जिसके कारण शहरीकरण ने और भी तेज़ रफ़्तार पकड़ ली है । परिणामस्वरूप वन-कटाई काफ़ी हद तक बढ़ गयी है जिससे शहर के वन आवरण में गिरावट आई है और भूमि की गुणवत्ता को भी नुकसान पहुंचा है ।